दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादीशुदा जिंदगी की खुली पोल, जानिए कौन किसको नचाता है उंगलियों पर
दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह बॉलीवुड के शानदार कपल में से एक हैं. लंबे समय तक एक-दूसरे को डेट करने के बाद इन दोनों ने साल 2018 में शादी की थी. शादी के बाद दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह का गृहस्थी जीवन कैसे चलाते हैं
दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादीशुदा जिंदगी की खुली पोल
दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह बॉलीवुड के शानदार कपल में से एक हैं. लंबे समय तक एक-दूसरे को डेट करने के बाद इन दोनों ने साल 2018 में शादी की थी. शादी के बाद दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह का गृहस्थी जीवन कैसे चलाते हैं, इसके बारे में अक्सर बताते रहते हैं. लेकिन घर के अंदर किसकी सबसे ज्यादा चलती है, इसको लेकर पहली बार कपल ने खुलासा किया है. दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने बताया है कि घर में सबसे ज्यादा किसकी चलती है.
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दरअसल गुरुवार को रणवीर सिंह की फिल्म सर्कस का पहला गाना करंट लगा रे रिलीज हुआ. इस मौके पर मुंबई में एक खास इवेंट रखा गया. इस इवेंट में दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह पहुंचे. इस दौरान उन्होंने मीडिया के कई सवालों का जवाब दिया. कपल से पूछा गया कि घर में इन दोनों में से कौन किसको उंगलियों चलती औसत रेखा क्या है पर नचाता है ? इस पर रणवीर सिंह ने पत्नी दीपिका पादुकोण का नाम लिया.
किस उम्र में होगी आपकी शादी, जानिये क्या कहता है हस्तरेखा शास्त्र
विवाह रेखा अगर कनिष्ठा उंगली और हृदय रेखा के बिल्कुल बीच में है तो शादी 30 से 32 साल की उम्र में होगी।
विवाह रेखा हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली (Little Finger) के बीच में होती है।
हस्तरेखा शास्त्र (Hastrekha Shastra/Palmistry) में यह माना जाता है कि हाथ की रेखाओं से व्यक्ति के जीवन के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है। कहते हैं कि हाथ की चलती औसत रेखा क्या है रेखाएं किसी भी व्यक्ति के जीवन के तमाम रहस्यों को बताने में सक्षम हैं। हाथ की लकीरों के माध्यम से व्यक्ति का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य, तीनों के राज़ जानने का दावा किया जाता है। यह जीवन के सभी पहलुओं के बारे में बता सकता है।
कई माता-पिता अपने बच्चों की शादी को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। हाथ की रेखाओं से भी शादी के योग का अंदाजा लगाया जा सकता है। हस्तरेखा विज्ञान विशेषज्ञों के मुताबिक हाथों की लकीरों के माध्यम से यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति की शादी किस उम्र में होगी। जानिए शादी को लेकर क्या कहते हैं हाथ की रेखाएं…
विवाह रेखा (Marriage Line) को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि हृदय रेखा (Hriday Rekha/Heart Line) कौन-सी होती है। हर व्यक्ति के हाथ में उंगलियों के निचले हिस्से पर एक रेखा होती है, जो सामान्य तौर पर ऊपर की ओर जाती है। इसे हृदय रेखा कहा जाता है।
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विवाह रेखा हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली (Little Finger) के बीच में होती है। यह रेखा हथेली के पिछले छोर की ओर जाती हुई दिखती है। हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली के बीच जो सबसे स्पष्ट रेखा होती है, उसे ही विवाह रेखा मानते हैं। अगर तीन-चार विवाह रेखा हैं तो यह प्रेम संबंधों को जताती हैं।
अगर किसी के हाथ में विवाह रेखा हृदय रेखा के करीब है तो ऐसे व्यक्ति की शादी 25 साल की उम्र तक हो जाती है। विवाह रेखा कनिष्ठा उंगली के जितनी करीब होगी, शादी उतनी ही देर से होगी।
विवाह रेखा अगर कनिष्ठा उंगली और हृदय रेखा के बिल्कुल बीच में है तो शादी 30 से 32 साल की उम्र में होगी।
विवाह रेखा जितनी कनिष्ठा उंगली के पास होगी शादी उतनी ही देर से होगी। विवाह रेखा जितनी हृदय रेखा के पास होगी शादी उतनी ही जल्दी होगी।
प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: गरीबी रेखा के मापदंड को बदलने की कवायद!
गरीबी रेखा क्या हो, इस पर बहस लंबे समय से चली चलती औसत रेखा क्या है आ रही है. गरीबी तय करने की कवायद 1960 से निरंतर चल रही है. फिर भी अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली. कोई सरकार एक रेखा तय भी करती है तो विपक्ष उस पर यक्ष प्रश्न खड़े कर देता है.
गरीबी रेखा की कसौटी क्या चलती औसत रेखा क्या है हो, सवाल अभी भी बाकी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
Highlights गरीबी रेखा तय करने के लिए जद्दोजहद अभी भी जारी, लंबे समय से चल रही है कोशिश गरीबी रेखा तय करने के लिए 16 सदस्यीय टॉस्क फोर्स का भी गठन किया गया था, पर नतीजा नहीं आया
केंद्र सरकार के केंद्रीय ग्राम पंचायत एवं विकास मंत्रालय ने नए सिरे से गरीबी रेखा तय करने के लिए वर्किग पेपर जारी किया है. अब इस पर्चे में गरीबी रेखा में मौजूद नागरिकों के घर, शिक्षा, वाहन, स्वच्छता आदि जानकारियों की प्रविष्टि की जाएगी. दरअसल विश्व-बैंक ने भारत को निम्न मध्यम आय श्रेणी में रखा है.
इस श्रेणी के लोगों का विश्व-बैंक के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रतिदिन औसत खर्च 75 रुपए होना चलती औसत रेखा क्या है चाहिए. चूंकि भारत में गरीबी रेखा के दायरे में आने वाले लोगों की आय 75 रुपए प्रतिदिन नहीं है इसलिए गरीबी रेखा के वर्तमान मानदंडों में नीतिगत बदलाव लाया जाना आवश्यक हो गया है.
गरीबों के लिए कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं
विडंबना है कि आजादी के 70 साल बाद भी गरीबों के लिए कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं हो पाए हैं. जबकि इस नजरिये से गरीबों की आमदनी तय करने की अनेक कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन गरीबी तय करने की कोई एक कसौटी नहीं बन पाई है.
इस यक्ष प्रश्न को सुलझाने की जवाबदेही जाने-माने अर्थशास्त्नी और नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविंद पनगढ़िया को सौंपी गई थी. गरीबी रेखा तय करने के लिए 16 सदस्यीय टॉस्क फोर्स का भी गठन किया गया था.
चूंकि नीति आयोग देश के ढांचागत विकास और लोक-कल्याणकारी योजनाओं की भूमिका तैयार करता है इसीलिए उसके पास आधिकारिक सूचनाएं और आंकड़े भी होते हैं, गोया उम्मीद थी कि टॉस्क फोर्स सर्वमान्य फॉर्मूला सुझाएगा. लेकिन लंबी जद्दोजहद के बाद फोर्स ने गरीबी रेखा की कसौटी सुनिश्चित करने से मना कर दिया था.
एक फीसदी आबादी के पास देश का 53 प्रतिशत धन
गरीबी तय करने की कवायद 1960 से निरंतर चल रही है. कोई एक सरकार एक रेखा तय करती है तो विपक्ष उस पर चलती औसत रेखा क्या है यक्ष प्रश्न खड़े कर देता है, किंतु उसी विपक्ष पर जब कसौटी तय करने की जिम्मेदारी आती है तो बगलें झांकने लगता है. यही वजह है कि देश में गैर-बराबरी की खाई दिनोंदिन चौड़ी हो रही है.
ऑक्सफेम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 63 अरबपतियों के पास केंद्रीय बजट से अधिक संपत्ति है. इसी तरह क्रेडिट सुइस एजेंसी के अनुसार वैश्विक धन के बंटवारे के बारे में जारी रिपोर्ट से खुलासा हआ है कि भारत में सबसे धनी एक फीसदी आबादी के पास देश का 53 प्रतिशत धन है.
इसके उलट 50 फीसदी गरीब जनता के पास देश की सिर्फ 4.1 प्रतिशत धन-संपत्ति है. साफ है कि सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और शैक्षिक न्याय के सरकारों के तमाम दावों के बावजूद असमानता सुरसा-मुख की तरह बढ़ रही है. नतीजा है कि साल 2000 में देश के सबसे धनी 10 फीसदी लोगों के पास 36.8 प्रतिशत धन-संपदा थी, जो आज 65.9 फीसदी से ऊपर पहुंच चुकी है.
भारत में गैर-बराबरी अमेरिका से कहीं ज्यादा
भारत में लोक-कल्याणकारी नीतियां दलीय एजेंडों में शामिल रहती हैं, लेकिन जब दल सत्तारूढ़ होते हैं तो इन नीतियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. दरअसल भारत में गैर-बराबरी अमेरिका से कहीं ज्यादा है. भारत में जितना राष्ट्रीय धन पैदा हो रहा है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा चंद पूंजीपतियों की तिजोरी में बंद हो रहा है.
क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के मुताबिक 2000-15 के बीच भारत में 2.284 खरब डॉलर धन पैदा हुआ, जिसका 61 प्रतिशत हिस्सा अधिकतम धनी महज एक प्रतिशत पूंजीपतियों के पास चला गया. 20 प्रतिशत चलती औसत रेखा क्या है धन अन्य 9 फीसदी पूंजीपतियों की जेब में गया. शेष बचा महज 19 प्रतिशत, जो देश की 90 फीसदी आबादी में बंटा.
देश की यही बड़ी आबादी फटेहाल है, बावजूद क्या यह मान लिया जाए कि कहीं गरीब का पेट ठीक से भरने न लग जाए इसलिए गरीबी रेखा बार-बार तय करने के उपाय किए जाते हैं? शायद इस हकीकत को अनुभव करने के बाद ही पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन को कहना पड़ा था कि देश में बड़ी मात्ना में खाद्यान्न उपलब्ध है, इसके बावजूद कोई नागरिक भूखा सोता है तो इसका मतलब है कि उसके पास अनाज खरीदने के लिए पर्याप्त धन नहीं है.
यह स्थिति आज भी बरकरार है, क्योंकि 2019 की जो भूख सूचकांक रिपोर्ट आई है, उसमें भारत 94वें स्थान पर है. जबकि 2018 में 102वें स्थान पर था. देश में 14 प्रतिशत आबादी अभी भी कुपोषित है. संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना प्रकोप के चलते आठ करोड़ अतिरिक्त लोग भारत में गरीब हो जाएंगे.
आज के चुनिन्दा 5 शेर
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क्या आप जानते हैं?
सरदार जाफ़री को 1968 में जब दिल का दौरा पड़ा तो अस्पताल से वापस आ कर डाक्टरों के मश्विरे पर तीन माह के आराम के दौरान उन्होंने अपनी यादों का इम्तिहान लेना शुरू कर दिया। जो शे'र उन्हें बचपन से याद थे उन्हें लिखते गए। स्मृतियों के इस इम्तिहान से एक लंबी सूची तैयार हो गई तब उन्हें ख़्याल आया कि उर्दू अश्आर का एक शब्दकोश तैयार किया जाए और उन्हें संयोग से उस काम के लिए दो साल के लिए फेलोशिप भी मिल गई। उन्होंने "सरमाया ए सुख़न" नाम से उर्दू शायरी की एक शब्दकोश तैयार की जिसमें इक्कीस हज़ार ऐसे शब्दों का चयन किया गया जो उर्दू शायरी में इस्तेमाल हुए हैं और उन्हें उर्दू वर्णमाला के क्रम में संकलित किया और उनकी व्याख्या के साथ साथ उदाहरण के रूप में अश्आर भी शामिल किए। यह काम शब्दकोश लेखन और ऐतिहासिक प्रसंग से बिल्कुल अलग था। "सरमाया ए सुख़न" की लंबी भूमिका भी बहुत दिलचस्प है। उसमें प्रसिद्ध और लोकप्रिय रूपकों का भी एक अध्याय बनाया गया है जिसका शीर्षक है 'मक़बूल इस्तिआरों का ख़ज़ाना'। सरदार जाफ़री की यह आख़िरी अदबी यादगार है जो उनकी ज़िंदगी में प्रकाशित नहीं हो सकी। उनका इरादा उसको कई खंडों में लिखने का था। अभी दूसरा ही खंड लिख रहे थे कि मौत ने उन्हें अपनी आग़ोश में ले लिया।
क्या आप जानते हैं?
शाह नसीर की गिनती अठारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध शायरों में होती है। शाह नसीर ने अपनी ज़िंदगी में बेशुमार शे'र कहे मगर अपना दीवान संकलित नहीं किया। जो कलाम कहते उसे एक जगह रखते जाते और जब बहुत सारा कलाम जमा हो जाता तो तकिए की तरह एक लम्बे से थैले में रख देते। घर वालों को निर्देश देते कि इसकी देखभाल करते रहना। शाह नसीर के बहुत से शागिर्द हुए जिनके कलाम को न केवल दुरुस्त करते बल्कि कभी कभी ग़ज़लें भी कह कर देते और मुशायरे पढ़वाते। सख़्त ज़मीनों और मुश्किल रदीफ़ व क़ाफ़िये में शे'र कहना उनका शौक़ था। शायरी की वजह से ही शाह आलम के दरबार में पहुंच हुई। उनका देहांत हैदराबाद में हुआ और उसके बाद उनका दीवान "चमनिस्तान-ए-सुख़न" के नाम से प्रकाशित हुआ। यह मशहूर शे'र उन्हीं से सम्बद्ध है:
ख़्याल-ए-ज़ुल्फ़ दोता में नसीर चलती औसत रेखा क्या है पीटा कर
गया है सांप निकल तो लकीर पीटा कर
क्या आप जानते हैं?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ सातवीं कक्षा में थे तब उन्होंने शायरी शूरू की। उनकी पहली कोशिश एक हजो(निंदा) थी। क़िस्सा यूं है कि फ़ैज़ को स्कूल के ज़माने से ही नावेल और शायरी पढ़ने का शौक़ हो गया था। उनके भाई तुफ़ैल अहमद ख़ां जो उन से तीन साल बड़े थे, उनके एक दोस्त ने फ़ैज़ से पूछा, 'तुम शायरी पढ़ते ही हो कि लिखते भी हो।'
फ़ैज़ ने कहा, 'कभी लिखी तो नहीं।'
तब उन्होंने अपने दोस्त छज्जो राम की हजो लिखने की फ़रमाइश की। फ़ैज़ ने अपनी समझ के अनुसार लिख दी। अगले दिन स्कूल में उस हजो की धूम मची हुई थी।नर्म दिल फ़ैज़ को बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे कारण छज्जो राम को हार्दिक कष्ट हुआ होगा। उन्होंने उसे ढूंढ कर उससे माफ़ी मांगी, लेकिन छज्जो राम तो बहुत ख़ुश था उस हजो की वजह से वह स्कूल में मशहूर हो गया। फ़ैज़ ने पंद्रह साल की उम्र में स्कूल में छात्रों की शायरी की प्रतियोगिता में अपनी ग़ज़ल पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया था।उस प्रतियोगिता के जज मौलवी मीर हसन थे जिन्होंने अल्लामा इक़बाल को भी पढ़ाया था। यही मीर हसन अल्लामा इक़बाल और फ़ैज़ दोनों के साझा उस्ताद थे, जिन्हें शम्सुल उलमा का ख़िताब भी मिला।
क्या आप जानते हैं?
अकबर इलाहाबादी पूर्वी संस्कृति और सभ्यता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपनी पूरी शायरी में अंग्रेज़ी सभ्यता पर कठोर व्यंग्य से काम लिया मगर स्वयं अपने पुत्र को शिक्षा के लिए लंदन भेज दिया, जिनका नाम इशरत हुसैन था। इशरत हुसैन को भेजते समय बहुत सारी प्रतिज्ञाएं भी लीं कि अपनी प्राच्य प्रम्परा को कभी न भूलना। एक बार इशरत का ख़त आने में बहुत देर हो गई तो अकबर इलाहाबादी ने अपना मशहूर क़तअ लिख भेजा जिसके दो शे'र मुलाहिज़ा हों;
इशरती घर चलती औसत रेखा क्या है की मोहब्बत का मज़ा भूल गए
खा के लंदन की हवा अह्द-ए-वफ़ा भूल गए
पहुंचे होटल में तो फिर ईद की परवा न रही
केक को चलती औसत रेखा क्या है चख के सिवइयों का मज़ा भूल गए
क्या आप जानते हैं?
उर्दू ज़बान हिंद-आर्याई परिवार के एक सदस्य के रूप में जानी जाती है। इस ज़बान ने हिन्दोस्तान की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को आज तक सुरक्षित रखा है। यहां तक कि भगवत गीता और महाभारत की 50 से अधिक पांडुलिपियां उर्दू ज़बान में मौजूद हैं, उनमें से कुछ रेख़्ता पर भी उपलब्ध हैं, जिन्हें क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
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