आप आप में से बहुत लोगों ने कभी ना कभी अखबारों में न्यूज़ चैनल में मैगजीन में या यूट्यूब पर या फिर किसी वेबसाइट पर शेयर बाजार तथा trading के बारे में जरूर सुना होगा । जिसमें किस तरह बताया जाता है कि आप शेयर बाजार से पैसा कमा सकते हैं। आपने कभी न कभी सुना होगा कि अमीर लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं जिसके कारण वह और अमीर होते जाते हैं। परंतु किसी आम आदमी के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह इसमें शुरुआत में इन्वेस्टिंग कर सके तो वह कुछ ही समय में डेरीवेटिव ट्रेडिंग का अर्थ तथा इसके प्रकार क्या है? पैसा कमाना चाहता है जिसके लिए वह ट्रेडिंग करता है।आज के इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की ट्रेडिंग क्या होती है तथा ट्रेडिंग के कितने प्रकार होते हैं । शेयर बाजार मैं शुरुआत करें तो आपको यह क्लियर हो।

डेरिवेटिव्स बाजार क्या होता है ? एवं इसके कार्य क्या हैं ?

डेरिवेटिव्स बाजार को व्युत्पन्नी बाजार भी कहा जाता है और 'डेरिवेटिव्स' वर्तमान उत्पाद से व्युत्पन्न लाभ को कहा जाता है । डेरिवेटिव्स एक वित्तीय उपकरण है जिसका मूल्य अन्य वित्तीय उपकरणों से परिवर्तनीय है । ऐसे उपकरणों में ट्रेजरी बिल, बॉण्ड्स, इक्विटी इंडेक्स, ब्याज दर, वस्तु, नोट, सोना आदि मुख्य हैं । वित्तीय डेरिवेटिव्स के अन्तगर्त निम्न उपकरणों को सम्मिलित किया जाता है -

डेरिवेटिव्स ने वित्तीय बाजार को बदल दिया है । इसका कारण बाजार विश्व स्तर का हो गया है । डेरिवेटिव्स सभी देशों में सामान्य रूप से प्रचलित है ।

वैश्विक डेरिवेटिव्स बाजार ( Global Derivatives Market ) :- विश्व में डेरिवेटिव्स बाजार तेजी से विकसित हुआ है । उदारीकरण, वैश्वीकरण अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार, अन्तर्राष्ट्रीय बैंकिंग सम्बन्धों के कारण डेरिवेटिव्स बाजार विश्व स्तर का हो गया है । डेरिवेटिव्स बाजार के विकसित होने के निम्नलिखित कारण हैं -

( 4 ) सूचना प्रौद्योगिकी, संचार एवं इलेक्ट्रॉनिक साधनों का विकास इनकी स्थापना लागतों में भारी कमी तथा नये आविष्कार के कारण कीमतों में कमी होना ।

'डेरिवेटिव्स' के विकसित होने में सुरक्षा दीर्घकालीन कोष, सभी कम्पनियों के लिए उपयुक्त होना आदि गुणों का योगदान है । विश्व में डेरिवेटिव्स का व्यापार वित्तीय बाजार, प्रतिभूति बाजार, विदेशी विनिमय बाजार और वस्तु बाजार में किया जाता है ।

वैश्विक बाजार में 'डेरिवेटिव्स' का प्रचलन नया नहीं है । सन 1970 में 'करेन्सी डेरिवेटिव्स' तथा 1980 में पहला 'Swaps Contract' 'खास अनुबन्ध' किया गया था । जो कि डेरिवेटिव्स का ही प्रकार है । कई देशों में ऑप्शन डेरिवेटिव्स ( Options Derivatives ) OTC डेरिवेटिव्स, फारवर्ड, फ्यूचर आदि प्रचलित किये गये हैं ।

भारत में सेबी ने 9 जून, 2000 को BSE ( Bombay Stock Exchange ) तथा 12 जून, 2000 को NSE ( National Stock Exchange ) में वित्तीय डेरिवेटिव्स जारी करने की अनुमति प्रदान की । सितम्बर 2001 में 'फ्यूचर ट्रेडिंग' ( Future Trading ) की अनुमति सेबी द्वारा दी गई है । सेबी ने स्टॉक फ्यूचर ( Stock Future ) एवं इक्विटी डेरिवेटिव्स की भी अनुमति प्रदान की । इस प्रकार भारतीय पूँजी बाजार में 'डेरिवेटिव्स' की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है ।

डेरिवेटिव्स आवश्यक क्यों ? ( Why Derivatives Necessary ? ) :- प्रत्येक व्यवसाय में जोखिम होता है । किन्तु यह जोखिम कम या अधिक हो सकता है । बीमा कम्पनियों के सहयोग से जोखिम को कम किया जा सकता है । किन्तु कुछ जोखिम, मूल्य परिवर्तन के कारण या वित्तीय सम्पत्तियों के दायित्वों में कमी के कारण या बाजार की दशाओं में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं । इससे नकदी का प्रवाह रुक जाता है । ऐसी जोखिम को दूर करने के लिए बीमा कम्पनियों के पास कोई योजना नहीं है । व्यापारिक जोखिम दूर करने के लिए वित्तीय डेरिवेटिव्स और अन्य वित्तीय उपकरण उपलब्ध नहीं हैं । बाजार की विपरीत दशाओं में भी डेरिवेटिव्स सहायता पहुँचाता है । डेरिवेटिव्स को जोखिम के विरुद्ध एक तकनीक माना जाता है । वित्तीय संस्थाएँ, फर्म निगम, कम्पनियाँ जोखिम उठाकर लाभ कमाने का उद्देश्य रखती है । किन्तु जोखिम कम करने के लिए इन संस्थाओं द्वारा प्रबन्धकीय रणनीति जोखिम विश्लेषण का प्रयोग किया जाता है ।

डेरिवेटिव्स के कार्य ( Functions of Derivatives ) :- डेरिवेटिव्स वित्तीय उपकरण है । इसमें कोष के उधार लेन-देन सम्बन्धी कार्य नहीं होते । वरन मूल्य-जोखिम को कम किया जाता है । डेरिवेटिव्स दो प्रमुख कार्य करता है - ( 1 ) जोखिम प्रबन्धन ( 2 ) बाजार क्षमता में सुधार ।

[ 1 ] जोखिम प्रबन्धन ( Risk Management ) :- डेरिवेटिव्स को 'जोखिम प्रबन्धन' का औजार ( Tools ) माना जाता है । इससे जोखिम प्रबन्धन के उद्देश्य को पूरा करने में सहायता मिलती है । इस डेरिवेटिव्स रूपी औजार का प्रयोग करने के पूर्व आवश्यक सुरक्षात्मक उपाय अपनाना चाहिए अन्यथा वित्तीय डेरिवेटिव्स का प्रयोग बिना किसी योग्यता के या असमान ढंग से किया जाता है तो संस्था घोर वित्तीय संकट में फँस सकती है ।

'वित्तीय डेरिवेटिव्स' नये जोखिम प्रबन्धन की तकनीक ही नहीं है वरन यह संगठन के जोखिम घटकों को उजागर करने वाला उपकरण है ।

[ 2 ] बाजार क्षमता में सुधार ( Improving Market-efficiency ) :- डेरिवेटिव्स, 'बाजार क्षमता' में सुधार कर आर्थिक व्यापारिक गतिविधियों को प्रेरित करता है । यह बाजारोन्मुखी प्रणाली ( Market-oriented System ) में व्यक्तिगत जोखिम घटकों को स्वीकार करता है जिससे कि वित्तीय बाजार क्षमता में सुधार होने लगता है । पूँजी बाजार में सभी स्तर की फर्म व्यापार करती है 'डेरिवेटिव्स' फर्म के आकार-प्रकार पर ध्यान नहीं देती । सभी प्रकार की फर्म के लिए डेरिवेटिव्स बाजार उपलब्ध होता है । डेरिवेटिव्स व्यापार में वृद्धि होती है । पूँजी बाजार क्षमता में वृद्धि होती है ।

डेरिवेटिव्स बाजार के भागीदार ( Participants of Derivatives Market ) :- डेरिवेटिव्स बाजार में भाग लेने वाले भागीदारों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । इन भागीदारों में Hedger ( हेजर ), Trader or Dealer ( व्यापारी या डीलर ), Speculator ( सट्टेबाजी करने वाला ) एवं Others ( अन्य ) होते हैं । इन भागीदारों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । डेरिवेटिव्स बाजार एक नियंत्रित बाजार के समान रहता है जिसमें मात्रा, मूल्य व समय पर संचालकों का नियंत्रण होता है । संचालकों द्वारा प्रत्येक कार्य करने की समय-सीमा निश्चित की जाती है । डेरिवेटिव्स बाजार में भागीदारों का हस्तक्षेप नहीं होता । इससे बाजार में अनिश्चितता एवं जोखिम नहीं रहती । बाजार के संचालक गण बोर्ड की अनुमति एवं मार्गदर्शन में कार्य करते हैं ।

( 1 ) Hedger ( हेजर ) - 'हेजर' वर्तमान या भविष्य की जोखम को समाप्त या कम करने के उद्देश्य से उल्टे ( Reverse ) सौदे करने वाला होता है । डेरिवेटिव्स बाजार में Hedger सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदार होता है ।

बैंक, डेरिवेटिव्स बाजार में हेजर के रूप में कार्य करते हैं । बैंक स्वामी के रूप में भी Hedger के समान कार्य करते हैं । ये विशेषकर सम्पत्ति या दायित्व-प्रबन्ध में रुचि लेते हैं । बैंक अवांछित जोखिम के विरुद्ध भी कार्य करते हैं ।

( 2 ) व्यापारी या डीलर ( Trader or Dealer ) - डेरिवेटिव्स बाजार में दूसरा भागीदार व्यापारी या डीलर होता है । बैंक भी व्यापारी की हैसियत से डेरिवेटिव्स बाजार में कार्य करते हैं । डीलर के रूप में बैंक डेरिवेटिव्स का प्रयोग 'बिड' ( Bids ) ( खरीद के प्रस्तावित मूल्य ) के रूप में निश्चित करके ग्राहक को प्रबन्धकीय जोखिम की आवश्यकता को संतुष्ट करते हैं । वित्तीय डेरिवेटिव्स के डीलर प्रायः ब्रोकर्स के रूप में कार्य करते हैं और ग्राहकों के लिए मध्यस्थता करते हैं । वर्तमान में डीलर या व्यापारी द्वारा डेरिवेटिव्स के पोर्टफोलियो का प्रबन्ध किया डेरीवेटिव ट्रेडिंग का अर्थ तथा इसके प्रकार क्या है? जाता है या उसकी समस्त जोखिम व्यवस्था को देखा जाता है । इस तरह डीलर की जोखिम प्रबन्ध-योग्यता व्यक्तिगत सौदों से लेकर पोर्टफोलियो प्रबन्धन तक होती है ।

( 3 ) सट्टेबाजी करने वाला ( Speculator ) - डेरिवेटिव्स बाजार में सट्टेबाजी करने वाले भागीदार को 'सट्टेबाज' ( Speculator ) कहा जाता है । डेरिवेटिव्स बाजार में माँग-पूर्ति के अन्तर से सट्टेबाज लाभ कमाता है दो विभिन्न बाजारों में मूल्य अन्तरों से लाभ कमाना सट्टेबाजों का मुख्य कार्य होता है । ये लोग दो अलग-अलग बाजारों में क्रय-विक्रय के एक साथ, एक समय में सौदों के विशेषज्ञ माने जाते हैं । डेरिवेटिव्स जैसे वित्तीय उपकरण सट्टेबाजों को अनिश्चितता एवं जोखिम से बचाते हैं ।

डेरिवेटिव क्या है?। डेरिवेटिव्स। Derivatives in Hindi

हालांकि कुछ डेरिवेटिव्स के अलग से भी एक्सचेंज होते हैं। जैसे कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स (Commodity derivatives) की ही बात करें तो इंडिया में इसके लिए अलग से भी एक्सचेंज है। ये क्या होता है इसे हम आगे समझेंगे।

डेरिवेटिव्स पूंजी बाज़ार में सबसे तेजी से धन कमाने का एक बेहतरीन जरिया है। कम से कम पैसों में भी इस विधि से लाभ कमाया जा सकता है। पर बात वही है कि अगर प्रॉफ़िट ज्यादा है तो रिस्क भी बहुत ज्यादा है।

कुछ लोग तो इस मार्केट में बहुत ज्यादा पैसा कमाने के मकसद से ही आते हैं वहीं कुछ लोग अपना रिस्क कम करने के लिए आते है। ये सब कैसे होता है सब हम आगे समझने वाले हैं।

| डेरिवेटिव क्या है?

प्रतिभूतियों (Securities) को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – (1) इक्विटि प्रतिभूतियां (equity securities) (2) डेट प्रतिभूतियां (Debt securities) और (3) डेरिवेटिव प्रतिभूतियां (Derivatives securities)। नीचे दिये गए चार्ट में आप इसे देख सकते हैं।

डेरिवेटिव क्या है

कहने का अर्थ ये है कि डेरिवेटिव भी एक प्रतिभूति है जिसका कि एक मौद्रिक मूल्य होता है। लेकिन यहाँ याद रखने वाली बात है कि ये अपना मूल्य खुद से प्राप्त नहीं करता है बल्कि किसी और चीज़ से प्राप्त करता है।

यानी कि कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे डेरिवेटिव (Derivatives) कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो, कोई भी ऐसा उपकरण जिसकी अपनी तो कोई वैल्यू न हो लेकिन उसकी वैल्यू किस और चीज़ पर निर्भर करता हो। जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। इस सब का क्या मतलब है, आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं।

| डेरिवेटिव क्या है; उदाहरण से समझिये

मान लीजिये आप एक सरकारी ऑफिस का कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं और आपका काम नहीं हो रहा है। पर एक दिन आपको एक बड़े अधिकारी से बात होती है और वो आपको एक कागज पर कुछ लिख के और अपना साइन करके आपको देता है और कहता है कि आप इसे लेकर उस अमुक स्टाफ को दिखा दीजिये आपका काम हो जाएगा।

आप उस कागज को को लेकर जाते हैं और आपका काम हो जाता है। तो आप खुद ही सोचिए कि क्या उस कागज की कोई कीमत थी। बिलकुल नहीं, उस कागज की अपने आप में कोई कीमत नहीं थी। उसकी कीमत उस साइन के कारण है जो उस सक्षम अधिकारी ने उस पर की है। यानी कि वो कागज अपनी कीमत कहीं और से प्राप्त कर रही है। यही तो डेरिवेटिव्स है।

जहां से वो अपना वैल्यू प्राप्त कर रहा है यानी कि वो साइन, वो उस कागज का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है। क्योंकि अगर वो साइन नहीं होता तो कागज की कोई वैल्यू नहीं होती। ऐसे ही ढेरों उदाहरण आप अपने आस-पास से ले सकते हैं।

जैसे कि बैंक नोट को ले लीजिये वो तो बस एक कागज का टुकरा भर है। लेकिन उसकी अपनी एक वैल्यू होती है क्योंकि आरबीआई उसे अप्रूव करती है। यानी कि एक बैंक नोट की वैल्यू आरबीआई से प्राप्त हो रही है इसीलिए आरबीआई उस नोट का Underlying Asset हुआ।

⚫ इसी तरह मान लीजिये पनीर है। उसकी अपनी कोई वैल्यू नहीं है। उसकी वैल्यू तो उस दूध पर निर्भर करती है जिससे वो बना है। दूध के दाम के अनुसार ही पनीर का दाम भी बदलेगा। यानी कि इस केस में दूध उस पनीर का Underlying Asset है।

⚫ इसी प्रकार अगर हम पेट्रोल को लें तो उसका अपने आप में कोई वैल्यू नहीं है उसकी वैल्यू क्रूड ऑइल पर निर्भर करता है। यानी कि वो अपनी कीमत क्रूड ऑइल से प्राप्त करता है इसीलिए पेट्रोल का Underlying Asset क्रूड ऑइल हो गया।

⚫ इसी प्रकार मान लीजिये रिलायंस का एक शेयर है तो उस शेयर की अपनी कोई वैल्यू नहीं है। उसकी वैल्यू तो कंपनी की नेट वर्थ (Net worth) तथा डिमांड और सप्लाइ से प्राप्त हो रहा है। इसीलिए शेयर का Underlying Asset वो कंपनी या मार्केट है।

कोमोडिटी डेरिवेटिव्स – अगर किसी डेरिवेटिव्स का Underlying Asset कोई वस्तु हो जैसे कि गेहूं, चावल, आलू, कॉटन, गोल्ड, सिल्वर आदि तो हम इसे कोमोडिटी डेरिवेटिव्स (Commodity Derivatives) कहते हैं।

फ़ाईनेंसियल डेरिवेटिव्स – इसी प्रकार अगर किसी डेरिवेटिव्स का Underlying Asset कोई उपकरण (Instrument) हो जैसे कि शेयर, इंडेक्स आदि तो हम उसे फ़ाईनेंसियल डेरिवेटिव्स (Financial derivatives) कहते हैं।

⚫ जब हम किसी कंपनी के स्टॉक या शेयर को खरीदते है या बेचते है तो उसे स्टॉक ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग कहते हैं। लेकिन अगर हम किसी कंपनी के स्टॉक को न खरीद या बेच करके उसके डेरिवेटिव्स की खरीद या बिक्री करते हैं तो उसे स्टॉक बेस्ड डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (Stock Based Derivatives Trading) कहा जाता है। ये कैसे होता है इसे हम आगे समझेंगे।

Q. जब हम शेयर में निवेश (Investment) कर सकते है और उससे भी पैसे कमा सकते हैं तो फिर डेरिवेटिव्स की क्या जरूरत है?

बात दरअसल ये है कि शेयर लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है। लेकिन अगर आपको कम समय में ही बहुत ज्यादा पैसे छापने है तो डेरिवेटिव्स इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। बहुत ही कम समय में अधिक से अधिक पैसा इससे कमाया जा सकता है। ये सब कैसे होता है सब आगे समझने वाले हैं। आइए पहले डेरिवेटिव्स (Derivatives) के प्रकार की बात करते हैं।

| डेरिवेटिव्स के प्रकार

डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं –
1. फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives)
2. फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future Derivatives)
3. ऑप्शन डेरिवेटिव्स (Option Derivatives)
4. स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives)

हम सभी को एक-एक करके अलग-अलग लेखों में समझने वाले हैं, ऐसा इसीलिए ताकि इसके काम करने के तरीके को विस्तार से समझ सके। तो आइये फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives) से शुरू करते हैं;

Trading क्या है? Stocks में कितने प्रकार की होती है? हिंदी में(2022)

Trading

आप आप में से बहुत लोगों ने कभी ना कभी अखबारों में न्यूज़ चैनल में मैगजीन में या यूट्यूब पर या फिर किसी वेबसाइट पर शेयर बाजार तथा trading के बारे में जरूर सुना होगा । जिसमें किस तरह बताया जाता है कि आप शेयर बाजार से पैसा कमा सकते हैं। आपने कभी न कभी सुना होगा कि अमीर लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं जिसके कारण वह और अमीर होते जाते हैं। परंतु किसी आम आदमी के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह इसमें शुरुआत में इन्वेस्टिंग कर सके तो वह कुछ ही समय में पैसा कमाना चाहता है जिसके लिए वह ट्रेडिंग करता है।आज के इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की ट्रेडिंग क्या होती है तथा ट्रेडिंग के कितने प्रकार होते हैं । शेयर बाजार मैं शुरुआत करें तो आपको यह क्लियर हो।

Table of Contents

ट्रेडिंग क्या होती है?

Trading शब्द का उपयोग व्यापार में प्राचीन काल से होता आ रहा है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है किसी वस्तु का या किसी उत्पाद का विनिमय करके लाभ प्राप्त करना । अर्थात् जब व्यापारी किसी उत्पाद(product) या वस्तु को कम मूल्य पर खरीदकर अधिक मूल्य पर बेच दे उसे trading कहा जाता है।

शेयर बाजार मैं ट्रेडिंग का अर्थ होता है उसमें लिस्टेड कंपनियों में खरीदी तथा बिक्री करना इसकी समय सीमा 1 दिन से लेकर 1 साल तक होती है अर्थात यदि आप कोई कंपनी के शेयर 1 दिन से लेकर 1 साल तक अपने पास रखते हैं तो कह सकते हैं कि आप उसमे ट्रेडिंग कर रहे हैं। जिसमें कंपनी का शेयर ही उसका उत्पाद होता है जिसमें लेनदेन का काम किया जाता है।

उदाहरण के रूप में हम इसे इस तरीके से समझ सकते हैं कि रिलायंस नाम की कंपनी है जिसका शेयर प्राइस ₹2000 है। एक व्यक्ति जिसका नाम प्रतीक है वह उसके शेयरों को खरीदता है तथा जब शेयर की कीमत 2500 रुपए हो जाती है तो वह उसे बेच देता है तथा उस पर ₹500 का लाभ अर्जित करता है तो हम कह सकते हैं कि उसने उस कंपनी के शेयरों में ट्रेडिंग करके यह पैसे कमाए हैं।

शेयर मार्केट मैं ट्रेडिंग बिना कंपनी के फंडामेंटल को समझें केबल प्राइस के आधार पर की जाती है जिसमें जैसे ही प्राइस बढ़ता है हम शेयर बेचकर पैसे कमा सकते हैं।

इस प्रकार की trading में चार्ट का महत्वपूर्ण स्थान होता है । क्योंकि इस प्रकार की ट्रेडिंग में चार्ट के विभिन्न पैटर्नो का अध्ययन किया जाता है।

जिसमें कंपनी के फंडामेंटल को समझें बिना केवल चार्ट के आधार पर ट्रेडिंग की जाती है ।चार्टों के इस प्रकार के अध्ययन को tecnical analysis कहते है।

ट्रेडिंग के प्रकार

ट्रेडिंग को मुख्यतः 4 प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं।

  1. Scalping
  2. Intraday trading
  3. Swing trading
  4. Positional trading

Scalping trading क्या होती है।

Scalping से तात्पर्य उस प्रकार की ट्रेडिंग से है जिसमे किसी कंपनी के शेयरों को कुछ समय के लिए खरीदा जाता है तथा फिर उसे बेच दिया जाता है ।

Scalping की समय सीमा 1मिनट से लेकर 15 मिनट तक होती है । इसमें लाभ उस समय के बीच मार्केट में हुए उतार चढ़ाव के आधार पर की जाती है।

Scalping मार्केट में 9:15 से लेकर 9:20 के बीच कभी भी की जा सकती है। इस समय के दौरान आप मार्केट में ट्रेड करके पैसा बना सकते हैं।

Intraday trading क्या होती है?

वह ट्रेडिंग जिसमे किसी कम्पनी के शेयर्स को 1 दिन के के लिए खरीदा तथा बेचा जाता है intraday trading कहलाती है। जो buyers तथा sellers इसमें सक्रिय रूप से trading करते है उन्हे intraday traders कहा जाता है।

Intraday trading की समय सीमा एक दिन के भीतर कितनी भी हो सकती है परंतु यह trading केवल 9:15 से 3:20 तक के बीच मे ही की जा सकती है यदि आप अपने शेयर्स 3:20 तक नहीं बेचते हो तो आपका स्टॉक ब्रोकर्स इन्हे सेल कर देगा डेरीवेटिव ट्रेडिंग का अर्थ तथा इसके प्रकार क्या है? ।

इस प्रकार की trading में चार्ट का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि चार्ट में मार्केट के छोटे से लेकर बड़े उतार चढ़ाव का ब्यौरा होता है चार्ट के अध्ययन के लिए इसमें बहुत सारे tools होते हैं जिनकी मदद से आप ट्रेडिंग से अच्छा खासा पैसा कमा सकते हैं।

Swing trading क्या होती है?

Swing trading से मार्केट में बहुत सारे लोगों ने पैसा बनाया डेरीवेटिव ट्रेडिंग का अर्थ तथा इसके प्रकार क्या है? है। एक ऐसी ट्रेडिंग होती है जिसमें किसी कंपनी के शेयरों को 1 दिन से अधिक समय के लिए रखा जाता है यह समय एक हफ्ता एक महीना तथा 1 साल तक हो सकता है।

Swing trading में भी चार्ट बहुत अधिक महत्वपूर्ण है इसमें दिए गए विभिन्न टाइम फ्रेम का यूज करके आप मार्केट में आए स्विंग का पता लगा सकते हैं और वहां से पैसा बना सकते हैं।

यह ट्रेडिंग इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें आपको किसी शेयर में बढ़ोतरी के लिए अधिक समय मिल जाता है।

Positional trading क्या होती है?

पोजीशनल ट्रेडिंग स्विंग ट्रेडिंग का एक प्रकार है जिसमें शेयरों को एक से अधिक दिन के लिए रखा जाता है परंतु यदि स्वयं ट्रेडिंग 1 महीने से अधिक के लिए हो जाती हैं तो उसे हम पोजीशनल ट्रेडिंग कह सकते हैं। पोजीशनल ट्रेडिंग में कंपनी के शेयरों को 1 महीने से 1 साल तक के लिए होल्ड किया जाता है तथा चार्ट की मदद से मार्केट में आए उतार-चढ़ाव के आधार पर ट्रेडिंग की जाती है।

आशा करता हूं कि आज के ब्लॉग के माध्यम से आपको ट्रेडिंग क्या होती है तथा यह कितने प्रकार की होती है समझ में आ गया होगा। जिससे आप जब भी शेयर बाजार में शुरुआत करें आपको इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी रहे।

आपको यह ब्लॉग पसंद आया हो या किसी तरह के finace या शेयर बाजार से संबंधित सवाल हो तो हमे comment करके बता सकते है हम आपको पूरी मदद करेंगे ।

Trading क्या होती है?

किसी व्यापार में ट्रेडिंग का तात्पर्य किसी वस्तु या उत्पाद को कम कीमत पर खरीद कर उसे ऊंचे दाम पर बेचकर लाभ प्राप्त करने को कहते हैं।
शेयर बाजार में उत्पाद की जगह कंपनी के शेयरों को खरीदा तथा बेचा जाता है।

Trading के कितने प्रकार होते है

ट्रेडिंग मुख्यतः चार प्रकार की होती है
Scalping, intraday trading, swing trading,तथा positional trading ।

क्या ट्रेडिंग से रेगुलर इनकम बनाई जा सकती है?

शेयर बाजार में ट्रेडिंग कर के आप रेगुलर इनकम बना सकते हैं बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्होंने इसे करके रेगुलर इनकम बनाई है परंतु इसमें पैसे कमाने के लिए आपको discipline के साथ यह करनी होगी तभी आप इसमें सफल हो सकते हो ।

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